वे विचार करने लगे कि इतने बडे़ और मिलों तक फैले हुए समुदाय में अपनी बात कैसे सुना सकूँगा? पर उसी रात्रि को स्वप्नावस्था में उनको प्रतीत हुआ कि कोई दैवी पुरुष आदेश दे रहे हैं-” हिम्मत को मत छोड़, सब काम पूरा हो जाएगा।
12.
उस दैवी पुरुष ने बादल की गरज के समान गंभीर उत् तर दिया कि मैं सत् य हूं, मैं अंधों की आखें खोलता हूं, मैं उनके आगे से धोखे की पट्टी हटाता हूं, मैं मृगतृष् णा के भटके हुओं का भ्रम मिटाता हूं और सपने के भूले हुओं को नींद से जगाता हूं, हे भोज, यदि कुछ हिम् मत रखता है तो आ, हमारे साथ आ और हमारे तेज के प्रभास से मनुष् यों के मन के मंदिरों का भेद ले, इस समय हम तेरे ही मन को जांच रहे हैं।