आपका कथन सर्वथा सत्य है! “ दया धर्मं का मूल है ”-एक वास्तविक भूखे प्यासे दुखिया को देख कर सम्रद्ध दयालुओं का द्रवित होना और पॉकेट में हाथ डाल कर पर्स निकालना अनुचित नहीं है लेकिन नियमित रूप से किसी व्यक्ति को, बिना उसकी ओर देखे और उसकी वास्तविक स्थिति जाने कुछ भी देना, धर्म नही, अधर्म है!