[...] के द्वन्द युद्ध में व्यस्त थे और हम 'जन' को 'सत्ता' ना मिलने के गम में पीठ किये बिस्तर पर [...]
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[...] के द्वन्द युद्ध में व्यस्त थे और हम ‘जन' को ‘सत्ता' ना मिलने के गम में पीठ किये बिस्तर पर [...]
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कानपुर (यदि दुःख हो तो क्षमा कीजियेगा, मेरा भी ससुराल है) होता तो ऐसे दृश्य और तीन चार द्वन्द युद्ध देख चुका होता।
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क्यों एक टिप्पणी से ही हमारा आपा खो जाता है और फ़िर हम जवाबी टिप्पणी लिखकर उसे द्वन्द युद्ध के लिये आमंत्रित कर लेते हैं।
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क्यों एक टिप्पणी से ही हमारा आपा खो जाता है और फ़िर हम जवाबी टिप्पणी लिखकर उसे द्वन्द युद्ध के लिये आमंत्रित कर लेते हैं।
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“क्यों एक टिप्पणी से ही हमारा आपा खो जाता है और फ़िर हम जवाबी टिप्पणी लिखकर उसे द्वन्द युद्ध के लिये आमंत्रित कर लेते हैं।
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कल जब लोग कतरनें बटोरें या ना बटोरें के द्वन्द युद्ध में व्यस्त थे और हम ‘जन ' को ‘सत्ता' ना मिलने के गम में पीठ किये बिस्तर पर पड़े थे…
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कल जब लोग कतरनें बटोरें या ना बटोरें के द्वन्द युद्ध में व्यस्त थे और हम ' जन' को 'सत्ता' ना मिलने के गम में पीठ किये बिस्तर पर पड़े थे…
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↑ चाचनामा राणा की मृत्यु को चाच के साथ हुए एकलौते ऐसे द्वन्द युद्ध के रूप में याद करता है जहां चाच ने छल किया और विजय के लिए आरूढ़ हुए.
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द्रोण, भीष्म, अर्जुन सब फीके, सब हो रहे उदास, एक सुयोधन बढ़ा, बोलता हुआ-'वीर, शाबाश।' द्वन्द युद्ध के लिए पार्थ को फिर उसने ललकारा, अर्जुन को चुप ही रहने का गुरु नें किया इशारा।