तो धार्मिक मूल्य तो नहीं था ‘ रामायण ' जो आज का महाकाव्य कहलाता है हमारे भारत का.
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जानकारीपूर्ण पोस्ट, आभार.कुछ धार्मिक मूल्यों के अलावे भी (हालांकि धार्मिक मूल्य भी किसी या इसी तर्क पर ही रहे होंगे)
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उक्त शौध से प्राप्तनिष्कर्ष में किशोर छात्र व छात्राओं में सैद्धान्तिक, आर्थिक, समाजिक, राजनैतिक व धार्मिक मूल्य समान पाये गये.
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हर समाज में धार्मिक मूल्य धुरी का काम करते हैं, जिनके इर्द-गिर्द लोगों के आचार-व्यवहार संचालित और संयमित होते हैं।
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जिन बालकों को नैतिक और धार्मिक मूल्य नहीं सिखाए गये हों, वे मानो जड़ से उखड़े वृक्ष होते हैं.
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जिन बच्चों को नैतिक और धार्मिक मूल्य नहीं सिखाए जाते, वे बडे होकर जड से उखडे हुए वृक्ष जैसे हो जाते हैं।
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हितों की टकराहट में हमारी सभ्यता संस्कृति, धार्मिक मूल्य एक तरफ खड़े रह जाते है, हम खूंखार दरिंदे बन जाते हैं।
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समानता, स्वाधीनता, भ्रातृत्व, भाईचारा, प्रेम, करुणा ये सारे बहुत पुराने धार्मिक मूल्य हैं और एक खास तरह की परिस्थितियों में ये लोकतंत्र में नजर आते हैं.
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कुछ लोग उसे एक विशिष्ट प्रकार का मूल्य मानते हैं और कुछ लोग अन्य मूल्यों के प्रति एक विशिष्ट प्रकार के दृष्टिकोण को ही धार्मिक मूल्य समझते हैं।
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कुछ लोग उसे एक विशिष्ट प्रकार का मूल्य मानते हैं और कुछ लोग अन्य मूल्यों के प्रति एक विशिष्ट प्रकार के दृष्टिकोण को ही धार्मिक मूल्य समझते हैं।