अली कहते हैं कि पॉकिस्तान में आतंकवाद, आए दिन होने वाले कत्लेआम, जेहाद इतने बड़े मुद्दे हैं कि एक पुरुष (?) के टीवी पर साड़ी पहन कर राजनीतिक हस्तियों का साक्षात्कार लेना, किसी भी तरह से धार्मिक विरोध की वजह नहीं बन पाया।
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अनबरूनी ने इस बात पर बहुत ही कम लिखा कि समाज में ब्राहमणों की सत्ता या स्तर विशेष था परंतु ईश्वरी मामलों पर वे शब्दों से युद्ध करते थे / हिंदुओं के बारे में जिनका उसने अध्ययन और जिनसे व्यवहार किया/ परंतु वे उनकी आत्मा या शरीर या संपदा धार्मिक विरोध के कारण नहीं लेते थे।