अचारस्वाति तिवारीमई की तेज धूप को देखकर याद आया कि चने की दल को धूप दिखाना है ।
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गौरेया, नन्ही-सी जान मगर वह भी ऐसा ऊधम जोते रहती है कि अनाज को धूप दिखाना मुहाल है।
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अचार (कहानी)स्वाति तिवारीमई की तेज धूप को देखकर याद आया कि चने की दल को धूप दिखाना है ।
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मेरी खुद की बचपन की बड़ी खुशनुमा यादें हैं... पटाखों को लेकर... अपने सीमित बजट में पटाखे चुनना.... उन्हें धूप दिखाना.... चालाकी से धीरे धीरे चलाना...
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हई बम..हौऊ बम-सड़क पर् लगे चौकी पर् चादर बिछा कर पठाखे को देख उनको एक बार छूना...! फिर..घर में पिछले साल के बचे पटाखे खोजना और उनको छत पर् चटाई बिछा करने धूप दिखाना! उफ्फ़..वो भी क्या दिन थे!
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शाम के समय भगवान को दीपक जलाना, धूप दिखाना और भोग लगाना यूँ तो अभी आनंद से 5 वर्ष बड़े भैया की ही जिम्मेदारी थी लेकिन यदि वे कभी आनंद को हड़काकर घर गंदा करने या गली में जाकर चीयाँ खेलने की बातें पिता जी के आने पर उनसे बता देने की धमकी देते तो उसे मजबूरी में नीचे जाना पड़ता।