इसके आनुष्ठानिक महत्व पर ध्यान दें तो धुलाई, उज्जवल, धवल आदि शब्दों में छिपे पवित्रता और निर्मलता के भाव स्पष्ट ही धौत से धोती की उत्त्पत्ति सिद्ध करते हैं।
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व्यवहारिक क्षेत्र में स्वच्छ धौत वस्त्र में सुसज्जित ये जितने सीधे-सादे से दिखाई देते हैं, इससे हट कर कुछ और भी हैं, जो सर्वसाधारण गम्य नहीं हैं।
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उसने भी मुसलमानों के आक्रमण से मध्यदेश की रक्षा की जैसा की उसकी प्रशस्ति से सूचित होता है, ' भुवनदलहेलाहर्म्य हम्मीर (= अमीर) नारीनयनजलदधारा धौत भूकोकतापः ' ।
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इसके आनुष्ठानिक महत्व पर ध्यान दें तो धुलाई, उज्जवल, धवल आदि शब्दों में छिपे पवित्रता और निर्मलता के भाव स्पष्ट ही धौत से धोती की उत्त्पत्ति सिद्ध करते हैं।
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संसार रूपी मरूभूमि में भटकते हुए, त्रितापों से प्रपीड़ित, सब प्रकार से निराश्रित, नाना प्रकार के क्लेशों से क्लान्त होकर जीव श्रीकृष्ण के पादपद्म धौत इस महातीर्थ में स्नान कर विश्राम अनुभव करते हैं।
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प्राचीनकाल से ही मानव धार्मिक अनुष्ठानों के लिए शुभ्र-धवल वस्त्रों का प्रयोग करता रहा है अतः धौत शब्द में निहित उज्जवलता के भाव से धौत में धोती के जन्म सूत्र छिपे हो सकते हैं।
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प्राचीनकाल से ही मानव धार्मिक अनुष्ठानों के लिए शुभ्र-धवल वस्त्रों का प्रयोग करता रहा है अतः धौत शब्द में निहित उज्जवलता के भाव से धौत में धोती के जन्म सूत्र छिपे हो सकते हैं।
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जीवन के रथ पर चढ़कर सदा मृत्यु पथ पर बढ़ कर महाकाल के खरतर शर सह सकूँ, मुझे तू कर दृढ़तर; जागे मेरे उर में तेरी मूर्ति अश्रु जल धौत विमल दृग जल से पा बल बलि कर दूँ जननि, जन्म श्रम संचित पल।
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जीवन के रथ पर चढ़कर सदा मृत्यु पथ पर बढ़ कर महाकाल के खरतर शर सह सकूँ, मुझे तू कर दृढ़तर; जागे मेरे उर में तेरी मूर्ति अश्रु जल धौत विमल दृग जल से पा बल बलि कर दूँ जननि, जन्म श्रम संचित पल। बहुत बहुत सुन्दर.....
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स्वयं ही गिरे पंख को श्री भवानी वात्सल्य के वश, कमल दल अलग कर बना निज लिया धार अवतंस मानी शिव शशि प्रभा से त्ा धौत जिसके नयन, षडानन का शिखि वहां पाना पर्वत गुहा ध्वनित घन गर्जना से स्वयं की, उसे तुम वहां पर नचाना शब्दार्थ...