मुलायम सिंह यादव भारतीय राजनीति में बिजली का वह नंगा तार हैं जिन को आप दुश्मनी छुएं तब तो मरना ही है, लेकिन अगर दोस्ती में छुएं तब भी मरना है।
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चाहे वह प्रिज्म हो, टेस्टट्यूब बेबी हो, लोह के गलना हो अथवा बिजली का नंगा तार हो-इन सबका प्रयोग कवि यथार्थ की रचनात्मक संवेदना में रूपांतरित करता है।
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“सूखे पत्तों पर चलना या फिर एक नंगा तार जो भक्क से जल उठता है...l ” “परंतु एक महान रचना स्मृति के सम्मोहक पाश में ही बंधकर नहीं रह जाती।
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मुलायम सिंह यादव भारतीय राजनीति में बिजली का वह नंगा तार हैं जिन को आप दुश्मनी छुएं तब तो मरना ही है, लेकिन अगर दोस्ती में छुएं तब भी मरना है।
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लेकिन घर में आते ही पाता कि बिजली रानी का तो कहीं अता-पता ही नहीं है तब ऐसा लगता कि जैसे किसी ने मेरे तपते जिस्म से बेवफा बिजली रानी का नंगा तार सटा दिया हो।
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बताते है कि गांव स्थित शिव मंदिर पर महाशिव रात्रि के दिन हुए आयोजन में उजाले के लिए दूर से ग्रामीणों की मदद से नंगा तार खीच कर लाया गया था और तभी से वह तार उसी स्थिति में पडा था।
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उनके पास देश को भरोसे में लेने की न तो भाषा है न शैली और न उपलब्धियां! वे कभी राष्ट्र के नेता नहीं रहे, कभी राजनीतिक-सामाजिक कार्यकर्ता नहीं रहे! जनता नाम का बिजली का नंगा तार उन्होंने कभी छुआ नहीं।
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शब्द के चारों तरफ एक “औरा” होता है, एक महक होती है, कोई नंगा तार होता है, उसकी नोक को छूने भर की देर हो और स्मृति भक्क से फट जाती है, कोई जलती सुलगती लकड़ी की आँच होती है, कोई लपकती ज्वाला कभी.
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शब्द के चारों तरफ एक “ औरा ” होता है, एक महक होती है, कोई नंगा तार होता है, उसकी नोक को छूने भर की देर हो और स्मृति भक्क से फट जाती है, कोई जलती सुलगती लकड़ी की आँच होती है, कोई लपकती ज्वाला कभी.
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इस भाव को एक अन्य गीतकार ने ‘ बिजली के तार ' के द्वारा संकेतित किया है जो व्यंग्यात्मक भी है और आज के जीवन की त्रासद दशा को प्रत्यक्ष करता है:-“ पांव के नीचे सुरंग / और सिर पर फन पटकता / एक नंगा तार बिजली का '' (देवेन्द्र शर्मा ‘‘ इन्द्र ”)