लेकिन उनकी रचनाएं पाठकों या श्रोताओं को किसी नकारवाद की ओर नहीं ले जातीं, बल्कि और भी राजनीतिक सचेतना और जनता के जीवन एवं उसके संघर्षों के साथ और अधिक एकाकार होने के लिए प्रेरित करती हैं।
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ज्ञान में चूंकि सामाजिक सरोकार की अन्तर्धारा शुरू ही से मौजूद थी, इसलिए उसका नकारवाद सच्चे सामाजिक विक्षोभ की उपज था और ‘ बीटनिक ' आन्दोलन भी उसे प्रभावित करने के बाद इस राह से डिगा नहीं सका।
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द मेट्रिक्स हाल के कई फिल्मों तथा साहित्यों से, एवं ऐताहासिक मिथकों एवं दर्शन सिमुलैक्रान-3, वेदान्त, अद्वैत हिन्दु धर्म, योग वैशिष्टय हिन्दु धर्म, जूडाईज्म, मेसयनिज्म, बौद्धधर्म, नास्टिसिज्म, क्रिश्चियन धर्म, अस्तित्ववाद, नकारवाद एवं अकॉल्ट टैरोट आदि से संदर्भित है.
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इनमें भी दूधनाथ का नकारवाद उसकी अपनी प्रकृति की देन था और ‘ सारिका ' में छपी कहानी ‘ बिस्तर ', से ले कर ‘ सुखान्त ' और ‘ धर्मक्षेत्रो कुरूक्षेत्रे ' से होते हुए ‘ नमो अन्धकारम ' और ‘ निष्कासन ' तक चला आया है।
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रवीन्द्र कालिया और काशीनाथ सिंह ने तो यह नकारवाद ओढ़ा हुआ था, जैसा कि रवि की कहानी ‘ 5055 ' में या फिर काशीनाथ सिंह की ‘ अपने लोग ' में नज़र आता है ; लेकिन दूधनाथ और ज्ञान, दोनों ही-एक चालू फिकरे का इस्तेमाल करूं तो-आस्था के साथ अनास्थावादी थे।
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उस समय पश्चिमी देशों के साहित्य में, शीतयुद्ध के संदर्भ में, यथार्थवाद के विरुद्ध एक अभियान-सा चलाया जा रहा था, जो आधुनिकतावाद, अस्तित्ववाद और नकारवाद की विचारधाराओं के साथ किये जाने वाले ‘ नवलेखन ' (नयी कविता, नयी कहानी, नयी आलोचना) के रूप में तथा ‘ एंटी ' और ‘ एब्सर्ड ' जैसे उपसर्गों वाली विधाओं (एंटी-स्टोरी, एंटी-नॉवेल, एब्सर्ड ड्रामा आदि) के रूप में सामने आ रहा था।