यहाँ यह कहना कि कबीर का बाजार मायालीन असार संसार का रूपक था, उनकी रचनात्मक यात्रा को नजर-अंदाज करना होगा।
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आज इस आधुनिक तकनीक और अतिजागरूक मीडिया के समक्ष यदि किसी भी, व्यक्ति, समूह, संस्था, राजनितिक पार्टी और सरकार के लिए वास्तविकता को छुपाना या नजर-अंदाज करना सुगम तो है किन्तु उसके घातक असर और परिणाम से पिंड छुटाना इतना सुगम न तो कभी पहले था और न कभी आगे भी हो सकता है?