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निक्ला उदाहरण वाक्य

उदाहरण वाक्य
11.यह लाश-ए बे-कफ़न असद-ए ख़स्तह-जां की है हक़ मग़्फ़रत करे `अजब आज़ाद मर्द था शौक़ हर रन्ग रक़ीब-ए सर-ओ-सामां निक्ला शौक़ हर रन्ग रक़ीब-ए सर-ओ-सामां निक्ला क़ैस तस्वीर के पर्दे में भी `उर्यां निक्ला

12.यह लाश-ए बे-कफ़न असद-ए ख़स्तह-जां की है हक़ मग़्फ़रत करे `अजब आज़ाद मर्द था शौक़ हर रन्ग रक़ीब-ए सर-ओ-सामां निक्ला शौक़ हर रन्ग रक़ीब-ए सर-ओ-सामां निक्ला क़ैस तस्वीर के पर्दे में भी `उर्यां निक्ला

13.क्यूंकर उस बुत से रखूं जान `अज़ीज़ क्या नहीं है मुझे ईमान `अज़ीज़ दिल से निक्ला पह न निक्ला दिल से है तिरे तीर का पैकान `अज़ीज़ ताब लाए ही बनेगी ग़ालिब वाक़ि`अह सख़्त है और जान `अज़ीज़ ईमान:

14.क्यूंकर उस बुत से रखूं जान `अज़ीज़ क्या नहीं है मुझे ईमान `अज़ीज़ दिल से निक्ला पह न निक्ला दिल से है तिरे तीर का पैकान `अज़ीज़ ताब लाए ही बनेगी ग़ालिब वाक़ि`अह सख़्त है और जान `अज़ीज़ ईमान:

15.दिल में फिर गिर्ये ने इक शोर उठाया ग़ालिब आह जो क़त्रह न निक्ला था सो तूफ़ां निक्ला दिल मिरा सोज़-ए निहां से बे-मुहाबा जल गया दिल मिरा सोज़-ए निहां से बे-मुहाबा जल गया आतिश-ए ख़ामोश के मानिन्द गोया जल गया

16.दिल में फिर गिर्ये ने इक शोर उठाया ग़ालिब आह जो क़त्रह न निक्ला था सो तूफ़ां निक्ला दिल मिरा सोज़-ए निहां से बे-मुहाबा जल गया दिल मिरा सोज़-ए निहां से बे-मुहाबा जल गया आतिश-ए ख़ामोश के मानिन्द गोया जल गया

17.बू-ए गुल नालह-ए दिल दूद-ए चिराग़-ए मह्फ़िल जो तेरी बज़्म से निक्ला सो परेशां निकला दिल में फिर गिर्ये ने इक शोर उठाया ग़ालिब आह जो क़तरा न निकला था सो तूफ़ां निकला ग़ालिबकी बहोत सारी रचनाओं की तरह ये भी मुश्किल है.

18.ऒझा जी, भई लगता है आप की यह पोस्ट प्रेमियो के लिये ज्यादा उचित है, भाई आज बीस साल से ज्यादा समय हो गया, लेकिन हमारे मुखं से आज तक नही निक्ला वो शवद जो आप खिडकी तले बोल आते थे, कानो मे आज तक वो शव्द नही पडा जो आप मिस्ड काल कर के सुन लेते है.

19.कभी हम उमको, कभी अपने घर को देखते हैं नज़र लगे न कहीं उसके दस्त-ओ-बाज़ू को ये लोग क्यूँ मेरे ज़ख़्मे जिगर को देखते हैं तेरे ज़वाहिरे तर्फ़े कुल को क्या देखें हम औजे तअले लाल-ओ-गुहर को देखते हैं क्योंकर उस बुत से रखूँ जान अज़ीज़ क्यूंकर उस बुत से रखूं जान `अज़ीज़ क्या नहीं है मुझे ईमान `अज़ीज़ दिल से निक्ला पह न निक्ला दिल से है तिरे तीर का पैकान `अज़ीज़ ताब लाए ही बनेगी ग़ालिब वाक़ि`अह सख़्त है और जान `अज़ीज़ ईमान:

20.कभी हम उमको, कभी अपने घर को देखते हैं नज़र लगे न कहीं उसके दस्त-ओ-बाज़ू को ये लोग क्यूँ मेरे ज़ख़्मे जिगर को देखते हैं तेरे ज़वाहिरे तर्फ़े कुल को क्या देखें हम औजे तअले लाल-ओ-गुहर को देखते हैं क्योंकर उस बुत से रखूँ जान अज़ीज़ क्यूंकर उस बुत से रखूं जान `अज़ीज़ क्या नहीं है मुझे ईमान `अज़ीज़ दिल से निक्ला पह न निक्ला दिल से है तिरे तीर का पैकान `अज़ीज़ ताब लाए ही बनेगी ग़ालिब वाक़ि`अह सख़्त है और जान `अज़ीज़ ईमान:

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