बचनसिंह सिहर-सा गया और उसके हाथों की अभ्यस्त निठुराई को जैसे किसी मानवीय कोमलता ने धीरे-से छू दिया।
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विमल-जब गहने बनवाने पर भी निठुराई की तो यही कहना पड़ेगा कि यह जाति ही बेवफा होती है।
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बचनसिंह सिहर-सा गया और उसके हाथों की अभ्यस्त निठुराई को जैसे किसी मानवीय कोमलता ने धीरे-से छू दिया।
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तुम्हे देख के ऐसा लगता है जैसे कोई कली मुरझाई-सी खिलने से पहले लील गई जिसको इस जग़ की निठुराई कोमलता का करुणांत हुआ.
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बच्ची जब हो जाएगी शोख हसीना तब दहेज मांगेगा कोई कमीना, और आ जाएगा हमें पसीना!-यह सोच कर मां-बाप निठारी जैसी निठुराई अपनाते हैं।
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इस पर भी जागी नहीं, चूक-क्षमा माँगी नहीं,निद्रालस वंकिम विशाल नेत्र मूँदे रही-किम्वा मतवाली थी यौवन की मदिरा पियेकौन कहे?निर्दय उस नायक नेनिपट निठुराई की,कि झोंकों की झड़ियों सेसुन्दर सुकुमार देह सारी झकझोर डाली,मसल दिये गोरे कपोल गोल;चौंक पड़ी युवती-चकित चितवन निज चारों ओर पेर,हेर प्यारे को सेज पास,नम्रमुख हँसी, खिलीखेल रंग प्यारे संग।
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पर वह अपने आवेग को नहीं रोक सकता-निर्दय उस नायक ने निपट निठुराई की कि झोकों झाड़ियों से सुन्दर सुकुमार देह, सारी झकझोर डाली मसल दिये गोरे कपोल गोल इस पर तो नायिका जाग पड़ी, किंवा जागने का बहाना किया-चैंक पड़ी युवती, चकित चितवन निज चारो ओर फेर हेर प्यारे को सेज पास, नम्र मुखी हंसी-खिली, खेल रंग, प्यारे संग।