मुझे याद आया कि प्रिय शिशु की प्रारंभिक ध्वनियों को हम निरर्थक प्रलाप समझते हैं परंतु तब भी शिशु के प्रति प्रेम के कारण वह हमें अच्छी भी लगती हैं और हम यह भी कहते हैं कि समझ न आई पर आवाज बड़ी प्यारी है.
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कृष्णा के साथ बातचीत के बाद उनके निरर्थक प्रलाप को असरहीन करने की कोशिश उनके प्रधानमंत्री युसुफ रजा गिलानी ने जरूर की लेकिन उसका कोई असर होता, इसके पहले ही एक बार फिर कुरैशी ने जिस तरह की बात कही है, वह भारत के लिए अपमानजनक है।
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आज पुनः भारतीय राजनीति का दौर नव प्रयोगों में उलझाकर जनता का ध्यान मूल समस्यायों से भटकाने में लगा हुआ है क्योंकि भारत मूलतः जिस सोच और समझ से आगे बढ़ सकता है हमेशा उसे दरकिनार करके एक दोहरे मायने और निरर्थक प्रलाप ही यहाँ का राजनेता और नौकरशाह कराता रहता है.