हिन्दी में भावार्थ-राजा के निरुद्यम होने पर कलियुग, जाग्रत रहने पर द्वापर, कर्म में तत्पर रहने पर त्रेता तथा यज्ञानुष्ठान में रत होने पर सतयुग की अनुभूति होती है।
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हिन्दी में भावार्थ-राजा के निरुद्यम होने पर कलियुग, जाग्रत रहने पर द्वापर, कर्म में तत्पर रहने पर त्रेता तथा यज्ञानुष्ठान में रत होने पर सतयुग की अनुभूति होती है।
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अंग्रेजी राज्य में भारत की बढ़ती हुई दरिद्रता का उल्लेख करते हुए भारतेंदु लिखते हैं:-‘ कपड़ा बनाने वाले, सूत निकालने वाले, खेती करने वाले आदि सब भीख मांगते हैं-खेती करने वालों की यह दशा है कि लंगोटी लगाकर, हाथ में तूंबा ले भीख मांगते हैं और जो निरुद्यम है, उनको तो अन्य की भ्रांति है।