यदि किसी मनुष्य ने किसी एक निर्धन मनुष्य की सेवा-सुश्रूषा बिना जाति-पाँति अथवा ऊँच-नीच के भेदभाव के, यह विचार कर की है कि उसमें साक्षात् शिव विराजमान हैं तो शिव उस मनुष्य से दूसरे एक मनुष्य की अपेक्षा, जो कि उन्हें केवल मंदिर में देखता है, अधिक प्रसन्ना होंगे।' आगे उन्होंने कहा था-'जो व्यक्ति अपने पिता की सेवा करना चाहता है, उसे अपने भाइयों की सेवा सबसे पहले करनी चाहिए।
12.
किसी शहर में एक सेठ रहता था | सेठ बहुत दयालु और इश्वर भक्त था | उसका नियम था की वह किसी अतिथि को भोजन कराए बिना खुद भोजन नहीं करता था | एक दिन उसके यहाँ कोई भी अतिथि नहीं आया | इस लिए वह खुद किसी निर्धन मनुष्य को ढूढ़ने निकल पड़ा | मार्ग में उसे एक बहुत बृद्ध तथा दुर्बल मनुष्य मिला | उसे भोजन का निमंत्रण दे कर बड़े आदर पूर्वक वह उसे घर ले आया | हाथ पैर धुलवा कर भोजन कराने के लिए बैठाया |