केतु: लोहा, तिल, सप्तधान, तेल, दो रंगे या चितकबरे कम्बल या अन्य वस्त्र, शस्त्र, लहसुनिया व बहुमूल्य धातुओं में स्वर्ण का दान निशा काल में करना चाहिए।
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ऋतु वसंत का सुप्रभात था मंद-मंद था अनिल बह रहा बालारुण की मृदु किरणों थीं अगल-बगल स्वर्णाभ शिखर थे एक दूसरे से विरहित हो अलग-अलग रहकर ही जिनको सारी रात बितानी होती, निशा काल से चिर-अभिशापित बेबस उस चकवा-चकई का बंद हुआ क्रंदन, फिर उनमें उस महान सरवर के तीरे शैवालों की हरी दरी पर प्रणय-कलह छिड़ते देखा है।
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ऋतु वसंत का सुप्रभात था मंद-मंद था अनिल बह रहा बालारुण की मृदु किरणें थीं अगल-बगल स्वर्णाभ शिखर थे एक दूसरे से विरहित हो अलग-अलग रहकर ही जिनको सारी रात बितानी होती, निशा काल से चिर-अभिशापित बेबस उस चकवा-चकई का बंद हुआ क्रंदन, फिर उनमें उस महान सरवर के तीरे शैवालों की हरी दरी पर प्रणय-कलह छिड़ते देखा है।