संस्कृति की दुर्दशा से मर्माहत तारूण्य ही ' ' निशिचर हीन करहुॅ मही '' का संकल्प बन बैठा है।
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यह देख-सुनकर अन्दर आक्रोश भर आया और उन्होंने संकल्प लिया-निशिचर हीन करौं महि, भुज उठाइ प्रण कीन्ह।
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गण-इसके अंतर्गत वे निशिचर पक्षी या उल्लू, श्वेत उल्लू इत्यादि, हैं, जो छछूँदर, चूहे इत्यादि का शिकार करते हैं।
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नियमत: वज्रकीट निशिचर होता है और दिन में या तो चट्टानों की दरारों में अथवा स्वयंनिर्मित माँदों में छिपा रहता है।
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राम को एक बार शरभंग के आश्रम में कहा गया, यह हड्डियों का ढेर है तो उन्होंने कहा, ' निशिचर हीन करौ मही, भुज उठाई प्रण कीन्ह।
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उन्होंने ही राक्षसों द्वारा मारे गये सज्जनों की अस्थियों का ढेर दिखाया था, जिससे प्रेरित होकर श्रीराम ने ' निशिचर हीन करऊं मही ' … का संकल्प लिया था।
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राक्षसों के महलो में सीतामाता को ढूंढते हुए हनुमानजी ने श्रीराम के धनुष बाण चिन्हों से चिन्हित एक घर देखा “ लंका निकर निशिचर वासा, इहा कहा सज्जन कर बासा ” लेकिन तुलसी के पोधो को देखकर कपिराज हनुमानजी बहुत प्रसन्न हुए ।
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आप ने विश्लेषण अच्छा किया जो प्रभु राम का अनन्य भक्त हो वह तो स्वतः प्रातः स्मरणीय होगा यह तो दास्य भक्ति के अनुरूप हनुमान जी ने कहा है इसी प्रकार से विभीषण ने भी अपने मुह से कहा है मै निशिचर अति अधम सुभाउ-शुभ आचरण किन नहीं काऊ तो क्या इसे सत्य माना जा सकता है