विद्यापति के पदों में प्रसारित देश ग्राम-देश है, उनके गीतों में चित्रित सुन्दरियाँ ग्रामीण सुन्दरियाँ हैं जिन्होंने अलंकार और प्रसाधन की सुविधा नहीं, जिनके सारे अलंकार उनके हाव-भाव हैं, जिनके बोल सभ्यता के सधे हुए कृत्रिम बोल नहीं, हृदय की निष्कपटता से निकले हुए सहज उद्गार हैं और किसी भी बनावट के बिना दमकनेवाला यह सौन्दर्य कितना सीधा-सादा, मगर कितना आकर्षक और पवित्र है: