पत्रकारिता के क्षेत्र में बढ़ते नैतिक स्खलन से भी वे चिंतित थे और इसके खिलाफ आवाज भी उठा ई. ल ेकिन जगाया तो उन्हें जाता है जो सोये हों जो जानबूझकर नहीं जागना चाहते हों उन पर तो न तो प्रेरक शब्दों का ही प्रभाव होता है और न ही उत्तम कर्मों का.
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अपनी पद्धति के बारे में उनका कहना है कि ‘‘ आप मेरे आलोचनात्मक लेखों को ध्यान से देखें तो पायेंगे कि मैने रचना के विश्लेषण के दौरान रूप के स्तर पर जहां उसमें मौजूद अन्तर्विरोधों और दुर्बलताओं की ओर संकेत किया है वहीं उस रचना के समूचे नैतिक स्खलन की बात भी की है।
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गणनात्मक दृष्टि से आज पत्र-पत्रिकाओं की संख्या अनन्त है किन्तु गुणात्मक दृष्टि से इस दिशा में लेखकों एवं सम्पादकों में नैतिक स्खलन की भावनायें अधिक जोर पकड़ रही हैं लेकिन आज जहाँ उपभोक्तावादी संस्कृति एवं बाजारीकरण का बोलबाला चारों ओर हावी है ऐसे में नि: स्वार्थ भाव से पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन करना अपने आप में एक चुनौती भरा कार्य है।
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फिलहाल सोनिया कांग्रेस की रणनीति 2014 के लोकसभा चुनावों में हिट होती है या फ्लॉप यह तो आनेवाले साल ही बतायेंगे मगर उसकी दूषित राजनीति और रणनीति से देश और देशवासियों का और भी नैतिक स्खलन होगा इसमें संदेह की कहीं कोई गुंजाईश नहीं है क्योंकि जनता और नीचे के लोग आमतौर पर वही करते हैं जो ऊपर के लोग करते हैं।
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देवेन्द्र स्वरूप का इस संकलन में समाहित लेखों के प्रति अभिमत है-' इस संकलन का प्रत्येक लेख राष्ट्रीय एकता, सुरक्षा के सामने खड़े खतरों एवं सामाजिक जीवन के नैतिक स्खलन के प्रति उनकी चिन्ता को ध्वनित करता है, उदात्त नैतिक मूल्यों के प्रति नई पीढ़ी के मन में आस्था जगाने के लिये परम्परा बोध का सहारा लेता है, इतिहास के प्रेरणादायी महापुरुषों एवं प्रसंगों का स्मरण दिलाता है, राष्ट्रीय एकता और सुरक्षा के सामने खड़ी समकालीन चुनौतियों का विश्लेषण करता है।..........