क्या जो विशिष्ट हो उसे सम्यक् न होने दें और सम्यक् को विशिष्ट? समाज के नैसर्गिक नियम तो ऐसे ही हैं-सम्यक् को विशिष्ट न बनने देने के।
12.
जब भी कोई व् यक्ति आपसे कुछ मांगने आता है, तो सृष्टि के नैसर्गिक नियम के अनुसार प्रकृति ने मांगने वाले के रूप में उस व् यक्ति का और देने वाले के रूप में आपका चुनाव किया है।
13.
आजभी आदान-प्रदान से ही सृष्टि आगे बढ़ पाएगी और यही प्रकृति का नैसर्गिक नियम भी है, पर जब हर आदमी ही खुद में डरा और अंसतुष्ट है अपनी ही सुरक्षा सीमा की लाइनें खींचने में लगा है तो फिर दूसरे पर विश्वास कैसे करपाए और दूसरों के साथ कैसे कुछ बांट पाए?
14.
‘ धन के पूंजी के रूप में ढलते जाने की प्रक्रिया का विकास इस नैसर्गिक नियम के आधार पर हुआ कि वस्तुओं का अंतरण (विपणन) इस प्रकार से किया जाए कि उनका विपणन-समतुल्यांक (बाजार मूल्य-उपयोगिता मूल्य) वस्तु के आरंभिक मूल्य के बराबर ही बना रहे. '
15.
गुस् से को लेकर एक अच् छा अनुभव लिया है मैनें कि एक सामान् य व् यक्ति जितना दुबला-पतला होता है उसे उतनी जल् दी गुस् सा आता है, उतरता भी उतना ही जल् दी है, नैसर्गिक नियम है, पतला तवा जल् दी गर्म होता है और ठंडा भी (रक् तचाप वगैरह की समस् या असामान् य स्थिति पैदा करती है) ।
16.
जीवन मे और वरिष्ट नगरको की दृष्टि मे विशेषकर अनुशासन का बहुत महत्व होता है | वरिष्ट के आदेशों व निर्देशों का स्वयमेव कनिष्ट द्वारा पालन करना ही अनुशासन होता है | वरिष्टता क्रम उपरोक्तानुसार नैसर्गिक नियम के अनुसार स्वतः निर्धारित हो चुका है कि बच्चा वरिष्तम, युवा श्रेष्ट्तर तथा वृद्ध श्रेष्ट होते हैं | इस प्रकार निम्न श्रेणी (बृद्ध) द्वारा उच्च श्रेणी के युवा व बच्चों की भावनाओं व&