इस त्रिरत्न की आराधना के अलावा हमें समाज के किसी भी विवाद अथवा पंथवाद में नहीं उलझना चाहिए।
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जो क्षेत्रवाद, पंथवाद, जातिवाद के संकीर्ण दायरों से मुक्त होकर रगों-रगों में राष्ट्रीयता का संचार करती है।
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जो क्षेत्रवाद, पंथवाद, जातिवाद के संकीर्ण दायरों से मुक् त होकर रगों-रगों में राष् ट्रीयता का संचार करती है।
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इस देश में जब भी कभी किसी महापुरुष ने सामाजिक बुराई का विरोध किया, तब-तब पंथवाद महत्त्वपूर्ण हुवा और सुधारवाद गौण रहा ।
15.
अहिंसा की विमल धारा प्रांतवाद, भाषावाद, पंथवाद और सम्प्रदायवाद के क्षुद्र धेरे में कभी आबद्ध नहीं होती और न किसी व्यक्ति विशेष की निजी धरोहर बन सकती है।
16.
आध्यात्मिक साधना के शिखर संत एवं धर्म, अध्यात्म व अहिंसा के प्रखर प्रवचनकार आचार्य विशुद्धसागरजी महाराज ने शनिवार को जैन धर्म के सिद्घांत, मुनिचर्या, पंथवाद सहित अनेक विषयों पर चर्चा की।