ऐसा नहीं कि विश्व कविता की महत्ता कम है लेकिन संस्कृत-उसे अभी छू न पाया पच्छम ।
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और पूर्व दक्कन के पठार और दक्षिण गुजरात के उत्तर पश्चिमी कोने में विदर्भ क्षेत्रों में चल रहे पच्छम की ओर बहती है.
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स्वामी जी की निगा ह अप ना दो र का पच्छम ने पूरब के महत्व देवा वाला-दो ई तरा का लो गाँ पे थी ।
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काहकशां है मेरी सुंदन, शाम की सुर्ख़ी मेरा कुंदन, नूर का तड़का मेरी चिलमन, तोड़ चुका हूं सारे बंधन, पूरब पच्छम उत्तर दक्खन, बोल इकतारे झन झन झन झन,
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एक पक्ष पच्छम के महत्व देवा वाला लो गाँ को थो, जो हठ करी के केता था के जो क ई भी अच्छो हे ऊ पच्छम की दुनिया का पास हे ।
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एक पक्ष पच्छम के महत्व देवा वाला लो गाँ को थो, जो हठ करी के केता था के जो क ई भी अच्छो हे ऊ पच्छम की दुनिया का पास हे ।
17.
मध्य अटलांटिक बढ़े रिज के रूप में, यह धक्का दिया कि अब उत्तरी अमेरिका पच्छम की ओर, जहाँ अंततः वहाँ इन छोटे terranes और बड़े अटलांटिक महासागर प्लेट के बीच एक टकराव था महाद्वीप है.
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मैं ने कहा हर्गिज़ हर्गिज़ मैं आपको जाने नहीं दूंगा, उन्होंने कहा अब मामला तै हो गया है, बै-नामे वगैरा सब हो गये हैं, मुझे बहुत सदमा हुआ, ऐसा अन्दाज़ा नहीं था कि इतनी जल्दी फैसला हो जायेगा, घर बहुत रोना आया, मेरी बीवी ने मुझे रोता देख कर वजह मालूम की तो मैं ने फोरन वजह बतायी, वह बोली कि क्या बता है, सूरज पच्छम में निकल रहा है, मुला जी के जुदा होने पर आप रो रहे हैं।
19.
श्री श्री रवि शंकर: आधुनिक सिद्धांत विकसित हो रहे हैं | उनके अनुसार सब कुछ कहीं से शुरु हुआ है | मैं इसे linear understanding कहूँगा | लेकिन एक spherical thinking भी है जिसकी यहाँ कमी है | ओरिएंट में sperical thinking रही है | पच्छम में linear understanding | सबका कहीं से शुरु होना आवश्यक है | एक एडम और ईव होने ही चाहिए जिनकी सब संतान हैं | इसके आधार पर हर कोई एक दूसरे का भाई यां बहिन है | तो फिर कोई किसी से शादी कैसे कर सकता है?
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तसव्वुरात की परछाइयाँ उभरती हैं मेरे पलंग पे बिखरी हुई किताबों को, अदाए-अज्ज़ो-करम से उठा रही हो तुम सुहाग रात जो ढोलक पे गाये जाते हैं, दबे सुरों में वही गीत गा रही हो तुम तसव्वुरात की परछाइयाँ उभरती हैं वो लम्हे कितने दिलकश थे वो घड़ियाँ कितनी प्यारी थीं, वो सेहरे कितने नाज़ुक थे वो लड़ियाँ कितनी प्यारी थीं बस्ती की हर-एक शादाब गली, ख्वाबों का जज़ीरा थी गोया हर मौजे-नफ़स, हर मौजे सबा, नग़्मों का ज़खीरा थी गोया नागाह लहकते खेतों से टापों की सदायें आने लगीं बारूद की बोझल बू लेकर पच्छम से हवायें आने लगीं