परागज ज्वर में नाक पर प्रभाव पड़ता है तथा पराग हवा द्वारा साँस के तथा नाक तक पहुँचता है।
12.
एलर्जी व परागज ज्वर के रोगी को योग क्रिया के षट्क्रिया, आसन, प्राणायाम आदि क्रियाओं का अभ्यास करना चाहिए।
13.
योग क्रिया के बाद प्रेक्षाध्यान करते हुए मन में विचार करें-मेरा ' ' सायनासायटिस व परागज ज्वर धीरे-धीरे ठीक हो रहा है।
14.
वैसे इस रोग में ज्वर नहीं आता तथा फूलों से भी इसका कम संबंध है, किंतु इसका नाम परागज ज्वर ही प्रचलित है।
15.
के कारण प्रभावित होती है, जिससे व्यक्ति की नाक में खुजली होती है, आँख से पानी गिरता है और छींके आती हैं, तब यह अवस्था परागज ज्वर कहलाती है।
16.
प्रत्यूर्जनेत्रशोथ एक प्रत्यूर्जता के कारण उत्पन्न होता है और वर्ष के एक विशिष्ट समय में हो सकता है विशिष्टतः यदि किसी व्यक्ति को परागज ज्वर या अन्य वातावरणीय प्रत्यूर्जता हो तो।
17.
दोषी पराग से बचना ही परागजज्वर की सर्वोत्त्म चिकित्सा है, पर ऐसा संभव न होने पर हिस्टामिनरोधी ओषधियों के व्यवहार से परागज ज्वर के लक्षणों को दूर करने में सहायता मिलती है।
18.
व्यक्ति में होने वाले परागज ज्वर का मूल कारण उसके टी-कोषों व बी-कोषों की अतिसंवेदनशीलता होती है, जो किसी ऐसे वस्तु के सम्पर्क में आने से होती है, जिससे व्यक्ति को एलर्जी हो।
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विषाणु के फैलने से उत्पन्न नासिका ग्रंथि में जलन तथा परागज ज्वर के लक्षण के समान होते हैं लेकिन परागज ज्वर के लक्षण अधिक दुराग्रही (जो काफी समय के बाद प्रकट होता है) होते हैं और मौसम के अनुसार विभिन्नता रखते हैं।
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विषाणु के फैलने से उत्पन्न नासिका ग्रंथि में जलन तथा परागज ज्वर के लक्षण के समान होते हैं लेकिन परागज ज्वर के लक्षण अधिक दुराग्रही (जो काफी समय के बाद प्रकट होता है) होते हैं और मौसम के अनुसार विभिन्नता रखते हैं।