एक अन्तहीन, परिवर्तनहीन धुँधली रोशनी, जो न दिन की है, न रात की है, न सन्ध्या के किसी क्षण की ही है-एक अपार्थिव रोशनी जो कि शायद रोशनी भी नहीं है ;
12.
एक परमेश्वर है कि परिवर्तनहीन, अनन्त, सभी प्यार है, आप कुछ ज्ञान है जमा होता है, अपने उपहार को व्यक्त और एक बीमारी या दुर्घटना से पीड़ित और फिर मरने खत्म अंत?
13.
स्थिर, परिवर्तनहीन दृष्टि सिद्घांतवादी की हो सकती है, सुधारक-प्रचारक की हो सकती है और-भारतीय विश्वविद्यालयों के संदर्भ में-अध्यापक की भी हो सकती है, पर वैसी दृष्टि रचनाशील प्रतिभा की दृष्टि नहीं है।
14.
एक अन्तहीन, परिवर्तनहीन धुँधली रोशनी, जो न दिन की है, न रात की है, न सन्ध्या के किसी क्षण की ही है-एक अपार्थिव रोशनी जो कि शायद रोशनी भी नहीं है;
15.
ईश्वर यदि परिवर्तनहीन और अटल जीवित नियम न होकर कोई स्वच्छन्द व्यक्ति होता, तो वह अपनी क्रोधाग्निमें ऐसे सब लोगोंको जलाकर नष्ट कर देता, जो धर्मके नाम पर उसे और उसके नियमको माननेसे इनकार करते हैं
16.
स्थिर, परिवर्तनहीन दृष्टि सिद्घांतवादी की हो सकती है, सुधारक-प्रचारक की हो सकती है और-भारतीय विश्वविद्यालयों के संदर्भ में-अध्यापक की भी हो सकती है, पर वैसी दृष्टि रचनाशील प्रतिभा की दृष्टि नहीं है।
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एक अन्तहीन, परिवर्तनहीन धुँधली रोशनी, जो न दिन की है, न रात की है, न सन्ध्या के किसी क्षण की ही है-एक अपार्थिव रोशनी जो कि शायद रोशनी भी नहीं है ;
18.
इस नवीन, जीवित, विकासशील लौकिक गणतन्त्र का प्रतीक एक जड़, एक परिवर्तनहीन पुराखंड क्यों हो-वह भी एक ऐसे स्तम्भ का खंड, जो अपने समय में एकच्छत्र राजत्व का प्रतीक रहा और फिर ये सारी चीज़ें हैं भी तो निरी कलावस्तु और कला की परिभाषा में ही यह बात निहित है कि वह लोकोत्तर आनन्द देती है ;