मैंने तो कहीं दिनकर की उक्त बहुउद्धृत पंक्ति ही फिर से उद्धृत कर दी थी-कई बार कह चुका हूँ, फिर दुहराता हूँ कि साहित्य की मेरी समझ अधकचरी है और ज्ञान पल्लवग्राही-मैं साहित्य के अलिफ़ बे का भी विद्यार्थी नहीं हो पाया और यह दुःख मुझे जीवन भर सालता रहेगा.
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ये टिप्पणियां बड़ी गम्भीर टाइप की हैं और वे पहले लिख चुके हैं-मैं ठहरा विज्ञान का सेवक, साहित्य की मेरी समझ अधकचरी है और ज्ञान पल्लवग्राही विज्ञान के सेवक को विज्ञानेतर अखाड़े में तर्क पूर्ण बात कहने का प्रयास देखकर बड़ा अच्छा लगा।९.कविताजी, हम टिप्पणी कर ही रहे थे तब तक आपकी शिकायती टिप्पणी आ धमकी।
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यों मेरा सारा ज्ञान पल्लवग्राही ही रहा है परंतु इस सबमें मुझे चंदर माझी और रामदेवाजी की ऊल-जलूल बातों की ' हुंकारी ' मिल जाती है और रामदेवाजी के ऊल-जलूल तथा गुहा-हटन-चाटुर्ज्या आदि के ऊहापोह में कोई न कोई संबंध अवश्य है और वह संबंध बादरायण संबंध मात्र न होकर कोई तत्त्वगत सार्थक संबंध है, ऐसी मेरी धारणा है।
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भारतीय संविधान-निर्माताओं की विशेषता यह थी कि पल्लवग्राही तरीक़े से इधर का ईंट, उधर का रोड़ा जोड़कर, 1935 के औपनिवेशिक क़ानून के बुनियादी ढाँचे पर उन्होंने एक ऐसी वृहद संवैधानिक अट्टालिका खड़ी की जो लुभावने नारों-वायदों और अन्तरविरोधी धाराओं की आड़ में भारतीय पूँजीपति वर्ग के शोषण और अत्याचारी शासन की बख़ूबी पर्दापोशी करने का काम करता है।
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मैंने पहले ही दावा त्याग में यह स्वीकार किया है की इस विषय में मेरी रूचि बस पल्लवग्राही ही है-मेरा स्वभाव सदी अर्जित जानकारी को साझा करने का रहा है बस! आप कृपा कर अवश्य ही कंही हुयी त्रुटियों को अवश्य इंगित कर देगीं और किसी अज्ञानता वश उपेक्षित रह गए बिंदु को भी उद्घाटित करेगीं! हाँ एक बात तो आप स्वीकारेगी की शास्त्रीय और साहित्यिक दृष्टियों में कहीं कहीं फर्क भी है!
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के ४ महीने के इस्तमाल के बाद वोह लगभग ३ इंच बढ़ गई है | मैंने उसके आत्मविश्वास के स्टार में एक बहेतर बदलाव देखा है और इसने उसके लिए सब फर्क बनाया है | कीमत पर विचार करके हम लोग बोहोत उलज़ं में थे लेकिन यह इसके लायक है | में सोलह साल का हूं और सामान परिणामों की अपेक्षा करता हूं क्यों की यद्यपि ये पल्लवग्राही लगता है, मेरा यह मानना है की उंचा बढ़ना आपके आत्मविश्वास और जीवन पर के दृष्टिकोण को प्रभावित करता है |
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जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनके भी अपराध कितनी अच्छी बात है दिनकर समग्र की चर्चा हो रही है दिनकर विशेषज्ञों द्वारा ब्लागजगत में...मैंने तो कहीं दिनकर की उक्त बहुउद्धृत पंक्ति ही फिर से उद्धृत कर दी थी-कई बार कह चुका हूँ,फिर दुहराता हूँ कि साहित्य की मेरी समझ अधकचरी है और ज्ञान पल्लवग्राही-मैं साहित्य के अलिफ़ बे का भी विद्यार्थी नहीं हो पाया और यह दुःख मुझे जीवन भर सालता रहेगा.बस विद्वानों की सोहबत का दुर्व्यसन न जाने से कहाँ से छूत सा लग गया मुझे...बहरहाल....