बुजुर्गवार ने एक ही सांस में पाजीपन के ऐसे बारीक शेड्स गिनवा दिये कि जब तक आदमी हर गाली के बाद शब्दकोष न देखे या हमारी तरह लम्बे समय तक भाषाविदों की सुहबत के सदमे न उठाये हुए हो वो जबान और नालायक़ी की उन बारीकियों को नहीं समझ सकता।
12.
बुजुर्गवार ने एक ही सांस में पाजीपन के ऐसे बारीक शेड्स गिनवा दिये कि जब तक आदमी हर गाली के बाद शब्दकोष न देखे या हमारी तरह लम्बे समय तक भाषाविदों की सुहबत के सदमे न उठाये हुए हो वो जबान और नालायक़ी की उन बारीकियों को नहीं समझ सकता।
13.
बुजुर्गवार ने एक ही सांस में पाजीपन के ऐसे बारीक शेड्स गिनवा दिये कि जब तक आदमी हर गाली के बाद शब्दकोष न देखे या हमारी तरह लम्बे समय तक भाषाविदों की सुहबत के सदमे न उठाये हुए हो वो जबान और नालायक़ी की उन बारीकियों को नहीं समझ सकता।
14.
भलेमानुस से बन जाते हैं पाजी, पड़े हैं अक् ल पर कैसे ये पत् थर! जो हो जाएँ ये इक चुल् लू में उल् लू, सुनाएँ लाख साकीनामें फर फर, उचकते फाँदते हैं पी के ठर्रा, हैं इंसाँ शक् ल में, सीरत में बंदर, नहीं कुछ थाह उनके पाजीपन की भरे ऐबों से हैं दफ्तर के दफ्तर!