| 11. | सतत रक्तस्रावित पाटल-सदृश निज हृदय
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| 12. | मन में तिरस्करिणियों के झूल रहे अंतहीन पारभाषी पाटल पट।
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| 13. | हो ध्यानस्थ, तुम्हारे चित्रों से रँग कर नैनों के पाटल
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| 14. | पाटल मूक खड़ा तट पर है।
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| 15. | स्नेह से जो सींच इनको प्रीत के पाटल बना दे।
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| 16. | नैन के पाटल बनाकर कैनवस तुमने
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| 17. | गा-गाकर बह रही निर्झरी, पाटल मूक खड़ा तट पर है।
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| 18. | नयनों के पाटल पर संवरे चित्र बता देते जो मन को
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| 19. | दिनकर ने जो नाम लिखा है प्राची के स्वर्णिम पाटल पर
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| 20. | जब खुलती हैं तब उसके ही चित्र संवरते हैं पाटल पर
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