औधोगिककरण और बाजारीकरण के भारी दबाव के बावजूद रामकथा अब भी एक प्रभावकारी सांस्कृतिक-सामाजिक प्रेरक शकित के रूप में पारिवारिक व्यवहार और आर्थिक सम्बन्धों का संविधान रच रह ी है ।
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पारिवारिक व्यवहार, संप्रेषणीयता, दैनिक आचरण आदि के संदर्भ में जब समाज एक से अधिक भाषाओं के प्रयोग को सहज और स्वाभाविक स्तर पर स्वीकार करने लगे तब समुदायपरक बहुभाषिकता की स्थिति उभरती है ।