चारों ओर से लोग मुझसे प्रश् न पर प्रश् न करते हैं कि तुम अपनी प्रतिभा क् यों बिखरा रहे हो, क् यों नहीं हमारे पंक्ति-बंधन में आकर उसको एक दिशा में आगे बढ़ाते, युगपथ छोड़कर किन पिच्छिल पगवीथियों पर विभ्रांत हो? मैं किस-किस को और क् या जवाब दूं? उन् हें कैसे समझाऊं कि मेरे ये संस् कार ही मेरे अस्तित् व हैं, मैं इनको छोड़कर कुछ नहीं।