गीता जी का नित्य पाठ, पितर पूजा (श्राद्ध निकालना) करती थी।
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अगर चीन में कोई धर्म माना जा सकता है तो केवल पितर पूजा ही मानी जा सकती है।
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है कि वेद में पितर पूजा, भूत पूजा, देवी-देवताओं की पूजा(कर्म काण्ड) को अविद्या ही कहा है इसमें
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चीन वालों के सम्बन्ध में भी इस पितर पूजा की मान्यता देखी जाती है और आज भी व्याप्त है।
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इस तरह से ऐसा प्रतीत होता है कि धर्म पितर पूजा से विकसित मानने वालों का आधार काफ़ी मजबूत है।
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सनातन धर्म में पितर पूजा यानि पिंडदान करने से ‘ कर्ता ' को भी मोक्ष की प्राप्ति होती है!
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इसका प्रारंभिक अस्तित्व ऋग्वेद की उन कथाओं में देखा जा सकता है, जिन्हें हम यम-यमी पुरूरवा-उर्वशी पितर पूजा आदि नामों से जानते हैं।
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मैं महेंद्र मिश्रा जी से सहमत हूँ! मैं पितर पूजा कभी नहीं छोड़ता, न जाने क्यों इस पूजा के बाद बेहद शान्ति महसूस होती है!
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मिस्त्र बेबीलोन चीन तथा अमेरिका आदि के प्राचीन धर्मों के अध्ययन से ऐसे स्पष्ट चिन्हों का पता चलता है जिनके आधार पर कहा जा सकता है कि पितर पूजा से धर्म का अविर्भाव हुया है।
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पितर बोले बेटा यह बात तो तेरी सत है कि वेद में पितर पूजा, भूत पूजा, देवी-देवताओं की पूजा (कर्म काण्ड) को अविद्या ही कहा है इसमें तनिक भी मिथ्या नहीं है।