धूसर पदार्थ में तंत्रिका कोशाणु, में दस पिधान युक्त अथवा अयुक्त तंत्रिकातंतु तथा न्यूरोग्लिया होते हैं।
12.
प्रथम तंतु पर मेदस पिधान (मायलीन शीथ) चढ़ा रहता है, दूसरे तंतु पर नहीं होता।
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थैली न होने से वीर्य पीछे को जाकर पिधान और शिश्न के बीच से निकलकर योनि में पहुँच सकता है।
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थैली न होने से वीर्य पीछे को जाकर पिधान और शिश्न के बीच से निकलकर योनि में पहुँच सकता है।
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परमेश्वर (अनुत्तर तत्व) इसी शक्ति पंचक के सहारे सृष्टि, स्थिति, संहार पिधान और अनुग्रह रूप कार्य हर क्षण करता रहता है।
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परमेश्वर (अनुत्तर तत्व) इसी शक्ति पंचक के सहारे सृष्टि, स्थिति, संहार पिधान और अनुग्रह रूप कार्य हर क्षण करता रहता है।
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संवेग के पश्चिम श्रृंग में पुहंचने पर जब वह संयोजक सूत्र द्वारा पूर्व श्रृंग में भेज दिया जाता है तो वहाँ की कोशिकाएँ नए संवेग को उत्पन्न करती हैं जो तंत्रिकाक्ष कोशिकाओं द्वारा, जिस पर आगे चलकर पिधान (
18.
संवेग के पश्चिम श्रृंग में पुहंचने पर जब वह संयोजक सूत्र द्वारा पूर्व श्रृंग में भेज दिया जाता है तो वहाँ की कोशिकाएँ नए संवेग को उत्पन्न करती हैं जो तंत्रिकाक्ष कोशिकाओं द्वारा, जिस पर आगे चलकर पिधान (medullated) चढ़ने से वे तंत्रिका सूत्र बन जाते हैं।