गुर्दे के कार्यों में से अनेक कार्य नेफ्रॉन में होने वाले परिशोधन, पुनरवशोषण और स्राव की अपेक्षाकृत सरल कार्यप्रणालियों के द्वारा पूर्ण किये जाते हैं.
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गुर्दे के कार्यों में से अनेक कार्य नेफ्रॉन में होने वाले परिशोधन, पुनरवशोषण और स्राव की अपेक्षाकृत सरल कार्यप्रणालियों के द्वारा पूर्ण किये जाते हैं.
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गुर्दे का रोग वह बीमारी या विकृति है जो फिल् टरेशन, पुनरवशोषण तथा स्रवण के संबंध में गुर्दों के कार्यों को दुष् प्रभावित करती है।
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इसमें से सिर्फ 1. 5 लीटर जल मूत्र के साथ शरीर से बाहर निकलता है और बाकी, लगभग 99 प्रतिशत जल का पुनरवशोषण हो जाता है।
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गुर्दे के कार्यों में से अनेक कार्य नेफ्रॉन में होने वाले परिशोधन, पुनरवशोषण और स्राव की अपेक्षाकृत सरल कार्यप्रणालियों के द्वारा पूर्ण किये जाते हैं.
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और एल्डोस्टेरॉन की सान्द्रता बढ़ जाती है, जिसके परिणामस्वरूप सोडियम क्लोराइड के पुनरवशोषण में वृद्धि होती है, कोशिकेतर द्रव उपखंड का विस्तार होता है और रक्तचाप बढ़ जाता है.
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मूत्र का उत्पादन करते समय, गुर्दे यूरिया और अमोनियम जैसे अपशिष्ट पदार्थ उत्सर्जित करते हैं ; गुर्दे जल, ग्लूकोज़ और अमिनो अम्लों के पुनरवशोषण के लिये भी ज़िम्मेदार होते हैं.
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परासरणीयता में वृद्धि होने पर यह ग्रंथि एन्टीडाययूरेटिक हार्मोन (antidiuretic hormone) एडीएच (ADH) का स्राव करती है, जिसके परिणामस्वरूप गुर्दे द्वारा जल का पुनरवशोषण किया जाता है और मूत्र की सान्द्रता बढ़ जाती है.
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परासरणीयता में वृद्धि होने पर यह ग्रंथि एन्टीडाययूरेटिक हार्मोन (antidiuretic hormone) एडीएच (ADH) का स्राव करती है, जिसके परिणामस्वरूप गुर्दे द्वारा जल का पुनरवशोषण किया जाता है और मूत्र की सान्द्रता बढ़ जाती है.
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जब रेनिन के स्तर बढ़े हुए होते हैं, तो एंजियोटेन्सिन II और एल्डोस्टेरॉन की सान्द्रता बढ़ जाती है, जिसके परिणामस्वरूप सोडियम क्लोराइड के पुनरवशोषण में वृद्धि होती है, कोशिकेतर द्रव उपखंड का विस्तार होता है और रक्तचाप बढ़ जाता है.