पुरस्कार मिलने से जिसे सबसे ज्यादा खुशी होती है वह स्वयं पुरस्कृत व्यक्ति होता है, उसके बाद उसके परिवार वाले, फिर इष्टमित्र जिन्हें वह जानता हो उसके बाद उन लोगों को जो उसे पसन्द करते हों और उसे जानते हों।
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और फिर अंत में पुरस्कृत व्यक्ति का प्रसन्न होना स्वाभाविक है, मगर वह जाने-अनजाने ही अपने प्रतिद्वंद्वियों की, जो पुरस्कार प्राप्त करने की दौड़ में पिछड़ गए थे, व्यंग्य और ईर्ष्या का कारण भी बन जाता है।
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लेकिन निजी स्तरों पर दिए जाने वाले पुरस्कारों में अनेकों की पुष्ट सुचनाएं हैं कि पुरस्कृत व्यक्ति को जो चेक दिया जाता है वह उसीका होता है या उतने का चेक या राशि उससे पहले ही ले ली जाती है.
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पुरस्कार मिलने से जिसे सबसे ज्यादा खुशी होती है वह स्वयं पुरस्कृत व्यक्ति होता है, उसके बाद उसके परिवार वाले, फिर इष्टमित्र जिन्हें वह जानता हो उसके बाद उन लोगों को जो उसे पसन्द करते हों और उसे जानते हों।
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कल को कोई गलत सलत काम करते हुए कोई बात हुई तो शायद इन लोगों का मानना था कि और कोई साथ दे न दे पुरस्कृत व्यक्ति तो साथ देंगे ही और न भी दें तो क्या से.... कम से कम चुप तो रहेंगे ही.....