इतने आमूलगामी बदलाव के बाद ही चुनाव प्रणाली और शासन में व्याप्त भ्रष्टाचार मिटाया जा सकता है और ऐसा बदलाव स्वामित्व और उत्पादन की पूँजीवादी प्रणाली के मौजूद रहते सम्भव ही नहीं।
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इतने आमूलगामी बदलाव के बाद ही चुनाव प्रणाली और शासन में व्याप्त भ्रष्टाचार मिटाया जा सकता है और ऐसा बदलाव स्वामित्व और उत्पादन की पूँजीवादी प्रणाली के मौजूद रहते सम्भव ही नहीं।
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उत्पादन की वर्तमान पूँजीवादी प्रणाली में समाज के दो वर्ग हैं-एक ओर पूँजीपतियों का वर्ग है, जिसके हाथ में उत्पादन और जीवन-निर्वाह के साधन हैं, दूसरी ओर सर्वहारा वर्ग है, जिसके पास इन साधनों से वंचित रहने के कारण बेचने के लिए केवल एक माल-अपनी श्रम-शक्ति-ही है और इसलिए जो जीवन-निर्वाह के साधन प्राप्त करने के लिए अपनी इस श्रम-शक्ति को बेचने के लिए मजबूर है।
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उत्पादन की वर्तमान पूँजीवादी प्रणाली में समाज के दो वर्ग हैं-एक ओर पूँजीपतियों का वर्ग है, जिसके हाथ में उत्पादन और जीवन-निर्वाह के साधन हैं, दूसरी ओर सर्वहारा वर्ग है, जिसके पास इन साधनों से वंचित रहने के कारण बेचने के लिए केवल एक माल-अपनी श्रम-शक्ति-ही है और इसलिए जो जीवन-निर्वाह के साधन प्राप्त करने के लिए अपनी इस श्रम-शक्ति को बेचने के लिए मजबूर है।