“देखो! आप चेतनस्वरूप हैं इसी से ज्ञानस्वरूप और मन के साक्षी हैं क्योंकि जब मन शांत, चञ्चल, आनन्दित वा विशादयुक्त होता है उसको यथावत् देखते हैं वैसे ही इन्द्रियां प्राण आदि का ज्ञाता, पूर्वदृष्ट का स्मरणकर्त्ता और एक काल में अनेक पदार्थों का वेत्ता, धारणाकर्षणकर्त्ता और सबसे पृथक हैं | जो पृथक न होते तो स्वतन्त्र कर्त्ता इनके प्रेरक अधिष्ठाता कभी नहीं हो सकते |”