ताजिक-नीलकंठी ' ग्रंथ के अनुसार जो दैवज्ञ अर्थात भविष्य फल-कर्ता भक्त, दुखी, दीन-हीन पृच्छक के प्रश्न का उŸार नहीं देता उसका ज्ञान विफल हो जाता है।
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आठ पृच्छक आठ अलग-अलग विषयों को जो निम्नलिखित प्रकार हैं, अवधानी के सम्मुख प्रस्तुत करते हैं जिनके समाधान अवधानी अंत में सबको सही ढंग से देता है।
13.
प्रश्न फल निर्धारण की यह एक सरल, सुगम एवं परीक्षित विधि मानी जाती है जिसके आधार पर दैवज्ञ पृच्छक के प्रश्न का आसानी से समाधान करने में सफल होते हैं।
14.
स्पृष्टाङग् राशि वह होती है जो कालपुरूष के आधार पर निश्चित होती है अर्थात प्रश्न करते समय पृच्छक जिस अंग को स्पर्श करे उस अंग की राशि ही स्पृष्टाङग् राशि होती है।
15.
पृच्छक का अंगूठा हिलाकर या स्पर्श कर प्रश्न करना नेत्र पीड़ा, उंगली से स्पर्श कर प्रश्न करना पुत्री की ओर से कष्ट और सिर पर हाथ रखकर प्रश्न करना राज्य से भय का सूचक है।
16.
मनुष्य के हाथों को देखकर वास्तविक फलित करने के लिए आवश्यक है कि पृच्छक के आते समय उसके हाथों की गतिविधियों से उसके हाथ दिखाने के पहले ही काफी कुछ जानकारी जातक के विषय में देवज्ञ को प्राप्त हो जाए।
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मनुष्य के हाथों को देखकर वास्तविक फलित करने के लिए आवश्यक है कि पृच्छक के आते समय उसके हाथों की गतिविधियों से उसके हाथ दिखाने के पहले ही काफी कुछ जानकारी जातक के विषय में देवज्ञ को प्राप्त हो जाए।
18.
योगफल, गुणनफल और भागफल के आधार पर बिना किसी लग्न साधन के और बिना प्रश्न कुंडली बनाए पृच्छक के प्रश्न ‘ कार्य कब होगा ' या ' कितने दिनों में होगा ' का उŸार निम्न रूप में जाना जा सकता है।
19.
7. पृच्छक का स्वभाव: प्रश्न लगAेश और अष्टमेश दोनों नीच राशि में हो या अस्तंगत हो तो प्रश्Aकर्ता खिन्न ह्वदय, सुखहीन, दुखी, अनेक चिंताओं से ग्रस्त, किसी न किसी रोग से सदा ग्रस्त रहने वाला पृच्छक होता है।
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7. पृच्छक का स्वभाव: प्रश्न लगAेश और अष्टमेश दोनों नीच राशि में हो या अस्तंगत हो तो प्रश्Aकर्ता खिन्न ह्वदय, सुखहीन, दुखी, अनेक चिंताओं से ग्रस्त, किसी न किसी रोग से सदा ग्रस्त रहने वाला पृच्छक होता है।