भारत में चिडियों की पांच प्रजातियां पाई जाती हैं जिनमें जीव विज्ञानियों की भाषा में पैसर डोमैस्टिकस इंडिकस (घरेलू चिडिया) पैसर डोमैस्टिकस हिस्पानियों लैनसिस (स्पैनिश स्पैरो), पैसर पायरोहोनटस (सिंध स्पैरो), पैसर रूटीलैंस (रूसैट स्पैरो) तथा पैसर मौनटेनस (यूरेशियन ट्री स्पैरो) शामिल हैं।
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भारत में चिडियों की पांच प्रजातियां पाई जाती हैं जिनमें जीव विज्ञानियों की भाषा में पैसर डोमैस्टिकस इंडिकस (घरेलू चिडिया) पैसर डोमैस्टिकस हिस्पानियों लैनसिस (स्पैनिश स्पैरो), पैसर पायरोहोनटस (सिंध स्पैरो), पैसर रूटीलैंस (रूसैट स्पैरो) तथा पैसर मौनटेनस (यूरेशियन ट्री स्पैरो) शामिल हैं।
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घरेलू चिडिया यानी की पैसर डोमैस्टिकस इंडिकस हमारे सभ्याचार तथा विरसे का अभिन्न चिन्ह है तथा इसको बचाने से हम न केवल अपने वातावरण को बढिया बना सकते हैं बल्कि अपने रहने के लिए एक सुरक्षित माहौल भी तैयार कर सकते हैं।
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जालन्धर में दस्तक वैलफेयर काउंसिल एनजीओ के संस्थापक प्रधान के अनुसार यूनाइटेड किंगडम की रायल सोसायटी फॉर प्रोटेक्शन ऑफ बड्ïर्स के आंकड़ों के अनुसार लगातार कम होती संख्या के कारण चिडिया-पैसर डोमैस्टिकस को अब विलुप्त होती जा रही पक्षियों की 39 अन्य प्रजातियों की लाल सूची में शामिल कर लिया गया है।
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वाकई कभी हर घर-आंगन का अहम हिस्सा रही घरेलू चिडिया यानी पैसर डोमैस्टिकस इंडिकस आजकल किसी की हथेली से दाना नहीं उठाती, किसी घर में उनके नन्हे बच्चे फुदकते नहीं नजर आते, अपनी मधुर चहचहाहट से तड़के जगाने वाली यह हाउस स्पैरो अब नजर नहीं आती तथा घरों में इनके घोंसले भी दिखाई नहीं देते।
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शिवनाथ नदी के किनारे से प्राप्त प्राचीन पुरावशेषों में ग्राम गोड़री, दुरेकला, दुर्ग, नगपुरा, कोडि़या, धमधा, तीतुरगांव, देवकर, सल्धा, सरदा, जोंग, तरपोंगा, मऊ, रोहरा, तरेंगा, गुड़ाघाट, मदकूद्वीप, ताला, दगौरी, पासिद, रामपुर, मटियारी, केसला, डमरू, तथा पैसर आदि ग्राम हैं ।
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प्राय: आम बोलचाल की भाषा में इन सभी पांच प्रजातियों को लोग गौरैया ही कहते हैं परन्तु जीव विज्ञानियों के मत अनुसार पैसर डोमैस्टिकस इंडिकस (देश में बहुतायत में पायी जाने वाली चिडिया) केवल कांटों वाले पेड़ों जैसे कीकर, बेरी व सिट्रस प्रजाति के पेड़ों जैसे नींबू, संतरा, किन्नू व गलगल पर ही अपना घोंसला बनाती हैं ताकि पर-भक्षी जैसे कि सांप, बिल्ली व बाज इन पर धावा न बोल सकें।