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पोष्य उदाहरण वाक्य

उदाहरण वाक्य
11.और यदि वह ढीठ होकर बढ़ा ही जाता है, तो वह कहती है, ' अच्छा, तो तू समझ-अपना जिम्मा सम्भाल! ' और निर्मम अपने खाते में से, अपने पोष्य और रक्षणीय बच्चों की सूची में से उसका नाम काट देती है।

12.कैवर्तराज की पोष्य पुत्री सत्यवती के गर्भ द्वारा महर्षि व्यास के रूप में अवतरित हुए-श्यामवर्ण का शरीर-जन्म लेते ही इन्होंने अपनी माता से जंगल में जाकर तपस्या करने की इच्छा प्रकट की-ये तप करने के लिए हिमालय चले गए और वहाँ नर-नारायण की साधनास्थलीबदरी वन में तपस्या की-वह बादरायण नाम से प्रसिद्धि हो गई।

13.महाराज शान्तनु मथुरा के सामने यमुना के उस पार एक धीवर के घर यपलावण्यवती (उर्वशी की कन्या सत्यवती) मत्स्यगन्धा या मत्स्योदरी को देखकर उससे विवाह करने के इच्छुक हो गये किन्तु धीवर, महाराज को अपनी पोष्य कन्या को देने के लिए प्रस्तुत नहीं हुआ उसने कहा-मेरी कन्या से उत्पन्न पुत्र ही आपके राज्य का अधिकारी होगा।।

14.एक बात तो तय है कि श्री रामदेव जैसो की आंदोलनों की समझ-उस परंपरा से है जो चंद्रकांता संतति से निकल कर आनंद मठ होता हुआ सुभाष चन्द्र बोस की गतिविधियों के प्रेरित और पोष्य है जिसका विकास 1945 के बाद नहीं हुआ पर ये विचारधारा आज भी जम्बू द्वीप के आल्हा खंडी ग्रामीण भारत की सबसे प्रभाव शाली समझ है.

15.एक बात तो तय है कि श्री रामदेव जैसो की आंदोलनों की समझ-उस परंपरा से है जो चंद्रकांता संतति से निकल कर आनंद मठ होता हुआ सुभाष चन्द्र बोस की गतिविधियों के प्रेरित और पोष्य है जिसका विकास 1945 के बाद नहीं हुआ पर ये विचारधारा आज भी जम्बू द्वीप के आल्हा खंडी ग्रामीण भारत की सबसे प्रभाव शाली समझ है.

16.दुःख आ पडे़, कोई पाप, कर्म बन पडे़, भय की स्थिति में कामनाएं अपूर्ण रहने पर, भक्त के प्रति अपराध हो जाने पर, भक्त द्वारा अपना अपमान होने पर, भक्ति में मन न लगने पर, अंहकार की भावना उत्पन्न होने पर, अपने पोष्य वर्ग के पोषण की दृष्टि से, स्त्री-पुत्र शिष्य आदि के द्वारा अपमान होने अर्थात् हर स्थिति में भगवान् श्रीकृष्ण के प्रति शरण-भावना बनाए रखना चाहिए।

17.दुःख आ पडे़, कोई पाप, कर्म बन पडे़, भय की स्थिति में कामनाएं अपूर्ण रहने पर, भक्त के प्रति अपराध हो जाने पर, भक्त द्वारा अपना अपमान होने पर, भक्ति में मन न लगने पर, अंहकार की भावना उत्पन्न होने पर, अपने पोष्य वर्ग के पोषण की दृष्टि से, स्त्री-पुत्र शिष्य आदि के द्वारा अपमान होने अर्थात् हर स्थिति में भगवान् श्रीकृष्ण के प्रति शरण-भावना बनाए रखना चाहिए।

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