आज मानव के साथ भी यही कसौटी है, प्रकृति नियम से चलती है, हर घटना नियम से घटती है.
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अगर हम यह मानें भी कि यही जन्म केवल आधुनिक है तो इससे प्रकृति नियम चक्र का ही उलंघन होगा ।
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आज मानव के साथ भी यही कसौटी है, प्रकृति नियम से चलती है, हर घटना नियम से घटती है.
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प्रभात फिर हुआ, रश्मि फिर पड़ी, प्रकृति नियम जान कर, कुमुदनी खिल उठी, पंखुरियों पे उसके कल का वो चित्र था.
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प्रभु और प्रभु की प्रकृति कभी नियम नहीं तोडते पर भक् त की प्रेमाभक्ति के कारण प्रभु और प्रभु की प्रकृति नियम तोड देते हैं ।
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प्रकृति नियम भी स्वतःप्रमाण होते हैं परन्तु उनको समझने के लिये विद्या की आवश्यकता होती है जो वेदों से ही प्राप् त हो सकती है ।
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क्यो की एक के आस्तित्वो पर आंच आएगी तोह दूसरा ज़रूर प्रभावित होगा, या समाप्त होगा, यही प्रकृति नियम है जो सर्वदा रहेगा,
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नियम प्रकृति में ही होते हैं, प्रकृति नियम आबद्ध है, इन नियमों को देखने वाला वैज्ञानिक हो सकता है और भारत में ऋषि या साधू भी।
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गाय जैसे निरीह और अमृत-प्रदायी मातृ-तुल्य प्राणी को काट कर खा लेता है, उससे ये पतंगे क्या दया की उम्मीद करेंगे? पर प्रकृति नियम से चलती है.
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जी हाँ! ग़लतियाँ केवल मनुष् य ही करता है, पशु नहीं करते क् योंकि पशु प्रकृति नियम का उलंघन नहीं कर सकते क् योंकि उनमें कर्म करने की स् वतन् त्रता नहीं है जैसे कि मनुष् य में है।