और जो अपने कर्म का मालिक नहीं है, जो प्रतिकर्म करता है-रिएक्ट होता है सिर्फ-उस आदमी के जीवन में बंधन बनते चले जाते हैं।
12.
जहां क्रोध जन्मता नहीं, जहां क्रोध की घड़ी मौजूद होती है और भीतर क्रोध का कोई रिएक्शन, कोई प्रतिक्रिया पैदा नहीं होती, कोई प्रतिकर्म पैदा नहीं होता।
13.
आज भावना बची नहीं, कर्म कम, प्रतिकर्म ज्यादा हो गए है और प्रतिकर्म को ही कर्म मान छद्दम हितैषी बनने की फुल नोटंकी की कर्म भूमि में हर कोई सर्वस्व दाव पर लगा अपने-अपने भयंकर कर्म में, सांसारिक रणभूमि में व्यस्त है, फिर बात चाहे साहित्य की हो, धर्म की हो, समाज सेवा के नाम पर छलावे की हो।
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आज भावना बची नहीं, कर्म कम, प्रतिकर्म ज्यादा हो गए है और प्रतिकर्म को ही कर्म मान छद्दम हितैषी बनने की फुल नोटंकी की कर्म भूमि में हर कोई सर्वस्व दाव पर लगा अपने-अपने भयंकर कर्म में, सांसारिक रणभूमि में व्यस्त है, फिर बात चाहे साहित्य की हो, धर्म की हो, समाज सेवा के नाम पर छलावे की हो।