उन सबकी ऐसी मंत्रणा सुनकर उस कुत्ते ने कहा कि महाराज आपने प्रतिज्ञापूर्वक मुझे न्याय देने की बात कि है.
12.
बलभद्र-नहीं-नहीं, मैं प्रतिज्ञापूर्वक कहता हूं कि तुम्हारे विषय में कोई ऐसी बात किसी के सामने न कहूंगा जिससे तुम्हारा नुकसान हो।
13.
भगवान् ने यह बात प्रणपूर्वक, प्रतिज्ञापूर्वक कही है कि जो मेरे शरण हो जायगा, उसको मैं सम्पूर्ण पापोंसे मुक्त कर दूँगा, उसका मैं उद्धार कर दूँगा ।
14.
129. जहाँ बैठकर काले लोगों को सामूहिक मृत्युदंड का ही फैसला जिन अंग्रेज पंचों को प्रतिज्ञापूर्वक करना था, उन आसनों को अंग्रेजों ने क्या नाम दिया? उ.
15.
मैं अपना पुरुषत्व तुमको कुछ समय के लिए दूंगा और यदि तुम प्रतिज्ञापूर्वक आश्वासन दो कि तुम मुझे वापस करने यहां आओगी तो उतने समय तक मैं स्त्री बना रहूंगा।
16.
नकाबपोश-बेशक ऐसा ही है (एक पुड़िया जंगले के अन्दर फेंककर) यह दवा तुम उनके मुंह में डाल दो, घण्टे ही भर में जहर का असर दूर हो जायेगा और मैं प्रतिज्ञापूर्वक कहता हूं कि इस दवा की तासीर से भविष्य में इन पर किसी तरह के जहर का असर न होने पावेगा।
17.
प्रसंग १-एक बार एक ब्राह्मण श्री जगन्नाथ को अपनी कन्या प्रतिज्ञापूर्वक देने को कह गया जब वह लडकी अवस्था में उस योग्य हुई तो उसको देने के लिए वह विप्र श्री जगन्नाथ जी के पास लाया प्रभु कि आज्ञा हुई कि जयदेव जी नामक भक्त मेरे ही स्वरुप है सो आप इसी क्षण ले जाके और मेरी आज्ञा उनसे उसको अपनी बेटी उन्ही को दे दो.
18.
' यों प्रतिज्ञापूर्वक विस्तार से वर्णन करने के लिए प्रवृत्त हुए भगवान श्रीवसिष्ठजी सृष्टिप्रकार के वर्णन द्वारा अद्वैत ब्रह्म का प्रतिपादन करने के लिए आरब्ध (आरंभ किये गये) उत्पत्ति प्रकरण का, सुखपूर्वक बोध के लिए, पहले संक्षेप में तात्पर्य दर्शाने की इच्छा से जैसे ' तद्वेदं तर्ह्यव्याकृतमासीत् ' इत्यादि सृष्टिप्रतिपादक श्रुति का ' अहं ब्रह्मास्मि ' इत्यादि महावाक्य के बोध में पर्यवसान है वैसे ही इस प्रकरण का भी ' दृष्टान्तस्यैकदेशेन बोध्यबोधोदये सति।
19.
इस प्रकार प्रतिज्ञापूर्वक अपने उपदेश श्रवण की ओर श्रीरामचन्द्रजी का ध्यान आकृष्ट किया गया, मन में अन्य जिज्ञासा के रहने पर श्रीगुरु के उपदेश पर ध्यान नहीं रहेगा, अतः सूचीकटाहन्याय से पहले उत्पन्न सन्देह की निवृत्ति के लिए प्रार्थना कर रहे श्रीरामचन्द्रजी ने कहाः भगवन्, श्रीव्यासजी के अवशिष्ट लोगों के समान जीवभाव में दिखलाई देने से एवं शुकदेव जी की मुक्ति सुनने से उत्पन्न हुए इस सन्देह को पहले क्षणभर में दूर कर दीजिये, इस सन्देह की निवृत्ति के अनन्तर विस्तीर्ण मोक्षसंहिता को कहिएगा।।