यद्यपि भारतीय संविधान-षडयंत्र के अधीन-इन हत्यारी व लुटेरी संस्कृतियों को, अनुच्छेद 29 (1) के अधीन, बनाए रखने का हर मुसलमान व हर ईसाई को असीमित मौलिक अधिकार देता है, तथापि प्रत्येक गैर मुसलमान व गैर ईसाई को भारतीय दंड संहिता की धाराओं 102 व 105 के अधीन प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार है।
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संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार लूट के विरुद्ध तब तक बना रहता है, जब तक अपराधी किसी व्यक्ति की मॄत्यु या उपहाति, या सदो ष अवरोध कारित करता रहता या कारित करने का प्रयत्न करता रहता है, अथवा जब तक तत्काल मॄत्यु का, या तत्काल उपहति का, या तत्काल वैयक्तिक अवरोध का, भय बना रहता है ।
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तोमर पेशे से एडवोकेट हैं, तोमर ने बताया कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 43 में किसी भी प्रायवेट व्यक्ति द्वारा अपराधी को गिरफ्तार किया जा सकता है तथा भारतीय दण्ड संहिता की धाराओं 96 से 106 तक प्रायवेट प्रतिरक्षा का अधिकार प्रदान करतीं हैं और शरीर या सम्पत्ति की सुरक्षा के लिये या उसके खतरे में होने पर किया गया कोई भी कार्य अपराध नहीं है!
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102. शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रारंभ और बना रहना-शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार उसी क्षण प्रारंभ हो जाता है, जब अपराध करने के प्रयत्न या धमकी से शरीर के संकट की युक्तियुक्त आशंका पैदा होती है, चाहे वह अपराध न किया गया हो, और वह तब तक बना रहता है जब तक शरीर के संकट की ऐसी आशंका बनी रहती है ।
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106. घातक हमले के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार जब कि निर्दो ष व्यक्ति को अपहानि होने की जोखिम है-जिस हमले से मॄत्यु की आशंका युक्तियुक्त रूप से कारित होती है उसके विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रयोग करने में यदि प्रतिरक्षक ऐसी स्थिति में हो कि निर्दो ष व्यक्ति की अपहानि की जोखिम के बिना वह उस अधिकार का प्रयोग कार्यसाधक रूप से न कर सकता हो तो उसके प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार वह जोखिम उठाने तक का है ।