बाबा रामदेव अपने प्रत्युत्पन्नमतित्व के कारण क्रूर शिकंजे से निकल भागे और उनकी जान बच पाई-लेकिन इस पूरी घटना में उपस्थित लोगों के प्रति एक स्वतंत्र लोकतांत्रिक देश का पुलिस का व्यवहार बिल्कुल अनैतिक था।
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एसके जूते का नाम था अविमृष्यकारिता, उसकी छतरी का नाम था प्रत्युत्पन्नमतित्व, उसके लोटे का नाम था परमकल्याणवरषु-पर जैसे ही उसने अपने घर का नाम रखा किंकर्त्तव्यविमूढ़-बस एक भूकंप आया और घर वर सब गिर पड़ा।
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और तभी मैंने अनुभव किया कि विनोद, परिहास, प्रत्युत्पन्नमतित्व तथा वक्ता इत्यादि गुण लेखक के व्यक्तित्व का अंग अवश्य होते हैं, किंतु कुछ अनुचित, अन्यायपूर्ण अथवा गलत होते देखकर जो आक्रोश जागता है-वह यदि कर्म में परिणत नहीं हो सकता और अपनी असहायता में वहां˜ होकर जब अपनी तथा दूसरों की पीड़ा पर हंसने लगता है तो वह विकट व्यंग्य होता है।