नौकरी न लगे तो झट लोग कह देते कि अरे भइया, बिरादरीवाद हो, प्रदेशवाद हो या कि पैसा.... नौकरी पाना सबके बूते की बात नहीं।
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प्रदेशवाद से लेकर भाई-भतीजावाद और नक़दवाद तक इतने क़िस्म के भ्रष्टाचार होते हैं कि आम कहे जाने वाला आदमी तो अब सरकारी नौकरी पाने के सपने भी नहीं देखता.
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मकसद सिर्फ इस बात का एहसास कराना है कि हम खुद भारतीय जब नस्लवाल, प्रदेशवाद, जातिवाद, भाषावाद और धर्मवाद से अछूते नहीं है तो विदेशियों से इस बात की उम्मीद क्यों करें कि वह हमसे बराबरी का बर्ताव करेंगे।
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आगरा में एक अखबार में काम कर रहे बिहार के एक पत्रकार के प्रति यह कैसी जहरीली मानसिकता: पत्रकार प्रबंधन के अंग के रूप में स्थापित संपादक से प्रताड़ित हों, यह तो देखने में आता है, लेकिन पत्रकार प्रदेशवाद या जातिवाद या किसी अन्य वाद के कारण अपने सहयोगियों से ही अपमानित-प्रताड़ित होता हो, यह देखने-सुनने में नहीं आता है।