प्रेमचंद के यहां कथानक का विकास सिर्फ प्रलंब रैखिक या हॉरिजेन्टल ही नहीं होता, प्रलंबात्मक विकास आक्षांशिक जटिलता की पारस्परिक रगड़ का परिणाम होती है।
12.
पितामह की देह-यष्टि सीधी, प्रलंब भुजायें, केशों का रजतवर्ण और स्थिर नेत्र-दृष्टि. अभी भी इतने सबल कि दो योद्धाओं को एक साथ पटक दें.
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सूर्यकान्ति छवि थी निर्दोष मुखमंडल की-पर्वत के ढालों-सा विस्तृत ललाट था-स्वप्नवान दृष्टि थी-विशाल अक्ष सरसिज-से-प्राणवान वाणी थी प्रीतिरस-सुधा-सिंचित-घन-विहीन शरद-काल नभ-सा विशाल वक्ष-सागर की लहरों-से प्रलंब पुष्ट बाहु थे।
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कोयले से भी प्रगाढ़ रंग, विशाल प्रलंब, स्थूल शरीर, अंगारकाय त्रिनेत्र, काले वस्त्र, रूद्राक्ष की कण्ठमाला, हाथों में लोहे का भयानक दण्ड और काले कुत्ते की सवारी-यह है महाभैरव, अर्थात् भय के भारतीय देवता का स्वरूप।
15.
यमुना के तट पर और यमुना के ही जंगलों में गाय और गोपियों के संग-साथ रहकर बाल्यकाल में कृष्ण ने पूतना, शकटासुर, यमलार्जुन, कलिय-दमन, प्रलंब, अरिष्ट आदि का संहार किया तो किशोरावस्था में बड़े भाई बलदेव के साथ कंस का वध किया।
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आदरणीय शशिभूषण जी, निराले छंद में अत्यंत सधे हुए बेजोड़ प्रलंब गीत से आप ने तो मन जीत लिया है-सच | और पूरे गीत का “ तुम ” जिसके लिए नेस्तनाबूद हो जाने की भविष्यवाणी की हाई है, से कविता की यति अधिक प्रभावी बन पडी है | हार्दिक बधाई एवं साधुवाद!
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उन्होंने बाल्यावस्था में ही इन्द्र के घोड़े उच्चै: श्रवा के समान बली, यमुना के वन में रहने वाले हयराज को मार डाला था तथा वृष प्रलंब, नरग, जृम्भ, मुर, कंस आदि का संहार किया था, जल देवता वरुण को पराजित किया था तथा पाताल वासी पंचजन को मारकर पान्चजन्य प्राप्त किया था।
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तुम बड़े दाता हो: तुम्हारी देन मैंने नहीं सूम-सी सँजोयी ; पाँच ही थे तत्त्व मेरी गूदड़ी में-मैंने नहीं माना उन्हें लाल चाहे यह जीवन का वरदान तुम नहीं देते बार-बार-(अरे मानव की जोनि! परम संयोग है!) किंतु जब आए काल लोलुप विवर-सा प्रलंब कर, खुली पाए प्राणों की मंजूषा जावें पाँचों प्राण शून्य में बिखर मैं भी दाता हूँ।
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पितृ-मोह के कारण उन्होंने नंद से कहा-' ब्रज में बड़े उपद्रवों की आंशका है, वहाँ शीघ्र जाकर रोहिणी और बच्चों की रक्षा करो।' कृष्ण जन्म वसुदेव, कृष्ण को कंस के कारागार मथुरा से गोकुल ले जाते हुए, द्वारा-राजा रवि वर्मा Vasudev Taking Krishna To Gokul From Mathura Jailराक्षस आदि का संहार पूतना वध, शकटासुर वध, यमलार्जुन मोक्ष, कलिय दमन, धेनुक वध, प्रलंब वध, अरिष्ट वध गोवर्धन पूजा गोकुल के गोप प्राचीन-रीति के अनुसार वर्षा काल बीतने और शरद के आगमन के अवसर पर इन्द्र देवता की पूजा किया करते थे।
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कवि-लेखक नाम के जीवधारियों को मेरा विनम्र परामर्श है कि वे अपने युवा-उन्माद को अपनी भावी बेटी के भावी युवा-उन्माद की समस्या से जोड़कर देखने का दृष्टिकोण अपनाएँ और अपने ह्रदय में गोस्वामी तुलसीदास-जैसे विचारवान को करवटें लेने दें | तुलसी का नाम लेनेवाले पुराने ख्यालातों के और दकियानूसी कहे जाते हैं, किन्तु युग-युग से जो प्रेमोन्माद का ‘ टाइफाइड ' चला आ रहा है, उसका ‘ एंटीबायोटिक ' सिर्फ तुलसी और उनके जैसों के यहाँ ही मिलता है | इतना प्रलंब चक्कर काटने के बाद भी “ अब अपना नया सवेरा है …..