ये सभी क्रियाएं अदृश्य रूप में होती हैं जिनमें प्रवाहक अपने स्वयं के चक्रों एवं संकल्प शक्ति का प्रयोग करता है।
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दूसरों के प्रति प्रेम, करुणा, निःस्वार्थ सेवा आदि भावों से पूरित व्यक्ति ही इस ब्रह्मांडीय ऊर्जा का सफल प्रवाहक एवं सम्प्रेषक बन पाता है।
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ये बताता है कि इस रिश्ते के प्रवाहक सफल व्यक्ति खोजते हैं जोकि जीविका अर्जित करने में ज्यादा केन्द्रित हैं परिवार या किसी अन्य प्राथमिकता की बजाय.
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ये बताता है कि इस रिश्ते के प्रवाहक सफल व्यक्ति खोजते हैं जोकि जीविका अर्जित करने में ज्यादा केन्द्रित हैं परिवार या किसी अन्य प्राथमिकता की बजा य.
15.
एक ऊर्जा प्रवाहक रोग निदान के लिए, इस ब्रह्मांडीय ऊर्जा का प्रयोग करके, किसी समय विशेष पर शरीर में हुई ऊर्जा की क्षति को पूरा करता है।
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जब कोई प्रवाहक, रोगी पर इस ऊर्जा का प्रयोग करता है, तो वह रोगी और इस ब्रह्मांडीय ऊर्जा के मध्य एक माध्यम के रूप में कार्य करता है।
17.
हालांकि अनेक लोग अब अपनी संकीर्ण मानसिकता के कारण उनको सिख धर्म के प्रवर्तक के रूप में मानते हैं जबकि ज्ञानी लोग उन्हें हिन्दू धर्म की आधुनिक विचाराधारा के प्रवाहक की तरह मान्यता देते हैं।
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हालांकि अनेक लोग अब अपनी संकीर्ण मानसिकता के कारण उनको सिख धर्म के प्रवर्तक के रूप में मानते हैं जबकि ज्ञानी लोग उन्हें हिन्दू धर्म की आधुनिक विचाराधारा के प्रवाहक की तरह मान्यता देते हैं।
19.
प्रवाहक अपनी संकल्प शक्ति एवं स्पर्श से इस ऊर्जा का प्रक्षेपण करता है, जिसमें यह ऊर्जा उसके आज्ञा चक्र से शरीर में प्रवेश करके उसकी हथेली के माध्यम से रोगी के शरीर में प्रवाहित होने लगती है।
20.
प्रवाहक अपनी संकल्प शक्ति से रोगी के ऊर्जा शरीर पर तथा अपने स्पर्श द्वारा रोगी के स्थूल शरीर पर, ऊर्जा का प्रक्षेपण करता है तथा कभी-कभी आवश्यकतानुसार अपने आज्ञा चक्र के अतिरिक्त विशुद्धि चक्र एवं मूलाधार चक्र का भी प्रयोग करता है।