2011 के सामान्य अध्ययन के द्वितीय प्रश्न-पत्र में लगभग 50 प्रतिशत प्रश्न भाषा समझ परिच्छेदों और आंकड़ा व्याख्याकरण के दो प्रमुख क्षेत्रों से लिये गये हैं।
12.
वहाँ भ्रम की स्थिति है-प्रश्न भाषा के सरलीकरण का है या विषय के? फिर, विषयों के आधार पर शब्दों का खेल भी होता है।
13.
लेकिन उनके समाधान के तरीके कुछ और होंगे जबकि हमारे तरीके कुछ और खोजने पडेंगे, क्योंकि हमारा प्रश्न भाषा के साथ साथ लिपी और वर्णमाला का भी है।
14.
भाई अमरेन्द्र जी आपने महत्त्वपूर्ण बात कही है, पर मुश्किल यह है कि सारी बातें बड़ी जल्दी शब्दों के घुमेर में पड़कर रह जाती हैं | वस्तुतः यह प्रश्न भाषा का नहीं कवि के अपने जीवन का है, इसे नकारना संभव न होगा कि कविता केवल बुद्धिविलास नहीं, वह अपने मूल में कहीं न कहीं कवि की जिंदगी को समेटे रहती है |
15.
भाई अमरेन्द्र जी आपने महत्त्वपूर्ण बात कही है, पर मुश्किल यह है कि सारी बातें बड़ी जल्दी शब्दों के घुमेर में पड़कर रह जाती हैं | वस्तुतः यह प्रश्न भाषा का नहीं कवि के अपने जीवन का है, इसे नकारना संभव न होगा कि कविता केवल बुद्धिविलास नहीं, वह अपने मूल में कहीं न कहीं कवि की जिंदगी को समेटे रहती है | काव्य-पदार्थ तो अनुभूति की उच्चावच स्थितियों से ही उपजता है, फिर फिर अपनी प्रकृति के अनुरूप भाषा में ढलकर सार्वजनिक होता है ;