जब हार्वर्ड विश्वविद्यालय में प्राच्य दर्शन की पीठ पर पीठाधीश की नौकरी का प्रस्ताव आया, तो उन्होंने कहा, “ संन्यासी नौकरी नहीं करता, केवल ज्ञान बांटता है।
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जब हार्वर्ड विश्वविद्यालय ने उनके लिए आजीवन प्राच्य दर्शन की पीठ का पद प्रस्तावित किया तो उन्होंने उसको यह कह कर तिरस्कृत कर दिया कि संन्यासी को संसार का कोई पद नहीं चाहिए।
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यिन और यांग के महत्व (भाग एक) पूरक विपरीत यदि आप प्राच्य दर्शन या संस्कृति के किसी भी पहलू का अध्ययन आप जल्द ही शर्तों ' यिन ' भर आते हैं और ' यांग '.
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कट्टर युक्ति (Physics) वादी ”” ' नोबल पुरस्कार विजेता …….. डाक्टर रिचर्ड फ़ाहेंम्या न. ” ' को अपने जीवन के अंतिम दिनों में प्राच्य दर्शन के इस रहष्य {mystic} व कल्पित तत्व की सर्वत्ता का ज्ञान हुआ था. उन्होंने कहा था..