काव्य को प्राणत्व की, मानव मात्र की मुक्ति चेतना के रूप में स्वीकारने वाले निराला की काव्य-यात्रा सन् 1920 में ‘ प्रभा ' मासिक में प्रकाशित ‘ जन्मभूमि ' नामक पहली कविता से प्रारम्भ हुई।
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अतः शिशु को प्राणत्व प्रदान करने वाले तथा उसके चरित्र एवं स्वभाव के इस प्रथम अवसर पर उसका रुप ऐसा होना चाहिए, जो सुपाच्य होने के साथ-साथ उसके आने वाले जीवन में माधुर्य का तथा सात्विक प्रवृत्तियों का संचार करने वाला हो।