परन्तु जब प्रोलीन के स्थान पर हिस्टिडीन आ जाता है तब इस हिस्टिडीन में अपने पडोसी स्थान 66 पर स्थित आइसोल्युसीन से जुडे रहने की प्रबल इच्छा नही पाई जाती.
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परन्तु जब प्रोलीन के स्थान पर हिस्टिडीन आ जाता है तब इस हिस्टिडीन में अपने पडोसी स्थान 66 पर स्थित आइसोल्युसीन से जुडे रहने की प्रबल इच्छा नही पाई जाती.
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प्रोटीनों के अतिरिक्त मुक्त अमीनो अम्ल भी हैं-यथा ग्लूटेमिक एसिड, एस्पार्टिक एसिड, सीरीन, प्लाइसीन थ्रीयोविन, ऐलेनीन अर्जीनीन, बेलीन, फिनाइल एलेन, एस्पेरेजीन, लायसीन, सीस्टीन, हिस्टीडीन, ल्यूसीन्स प्रोलीन एवं पाइकोलिक एसिड ।
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कुछ लोकप्रिय तकनीकों में लिचेनस्टेन सुधार (फ्लैट के शीर्ष पर रखा झंझरी पैच दोष), प्लग और पैच (दोष में रखा हुआ और लिचेंस्तेन-प्रकार पैच से आवरित झंझरी प्लग), और प्रोलीन हर्निया प्रणाली (दोष के पीछे रखा गया 2-परत झंझरी उपकरण) शामिल हैं.
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कुछ लोकप्रिय तकनीकों में लिचेनस्टेन सुधार (फ्लैट के शीर्ष पर रखा झंझरी पैच दोष)[8], प्लग और पैच (दोष में रखा हुआ और लिचेंस्तेन-प्रकार पैच से आवरित झंझरी प्लग), और प्रोलीन हर्निया प्रणाली (दोष के पीछे रखा गया 2-परत झंझरी उपकरण) शामिल हैं.
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संश्लेषित समावयवी चाहे वे सिस अमीनों अम्ल हो अथवा ट्रांस वसीय अम्ल, जैविक रूप से क्रियाशील नहीं होते इसके अतिरिक्त अमीनो अम्लों मे से एक ङ-प्रोलीन व-समायवी में परिवर्तित हो जाता है जो कि तंत्रिका विषालु (तंत्रिकाआें के लिए जहरीला) तथसा ग्रेफो विषालु (गुर्दो के लिए जहरीला) होता है ।
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आजकल आधुनिक सभ्यता के अनुयायी शिक्षित नागरिकों में देखा जाता है कि वे अपने बच्चों के नाक या कान में छेद करवाने डॉक्टरों के पास ले जाते हैं, जो मेडिकली सुव्यवस्थित तरीके से जीवाणु रहित सूई से नाक-कान में छेद करते हैं और प्रोलीन का तार बाँध देते हैं, जो एण्टीसेप्टिक होता है।